एक दिन, अकबर ने बीरबल से क्रुद्ध होकर उसे राज्य छोड़कर चले जाने के लिए कह दिया।
सम्राट की आज्ञा मानकर बीरबल चला गया।
कुछ दिनों के बाद अकबर को बीरबल की याद सताने लगी।
अकबर ने अपने दूतों को बीरबल को ढूँढ़ने भेजा पर बीरबल उन्हें कहीं नहीं मिला।
अंततः अकबर को एक युक्ति सूझी।
अपने राज्य के गाँवों में उसने एक संदेश भेजा, “तीन माह के भीतर आपको चतुराई से भरा घड़ा भेजना होगा अगर असफल रहे,
तो हीरे-जवाहरातों से भरा घड़ा आपको राजा के पास भेजना होगा।"
राजा का संदेश पाकर गाँव के मुखिया परेशान हो उठे।
बीरबल एक गाँव में छिपा हुआ था।
गाँव के मुखिया से जाकर उसने कहा, “मैं राजा को चतुराई भरा घड़ा भेजूँगा।”
बीरबल एक घड़ा लेकर अपने बगीचे में गया।
लता में लगे हुए एक छोटे तरबुज को उसने घड़े में रख दिया।
तीन माह बाद तरबूज ने बड़े होकर घड़े को भर दिया।
उसने घड़े को
अकबर के पास यह लिखकर भेजा, “घड़े को तोड़े बिना चतुराई को निकाल लें।”
अकबर ने तुरंत पहचान लिया कि यह बीरबल की ही करतूत है।
वह स्वयं उस गाँव में जाकर बीरबल को अपने साथ वापस ले आया।