एक दिन की बात है, महाराज अकबर किसी गहरी सोच में थे।
अचानक अपने विचारों से निकलकर उन्होंने
बीरबल से पूछा, “यदि न्याय और स्वर्ण मुद्रा में से किसी एक को तुम्हें चुनना हो तो तुम
किसे चुनोगे ?” “श्रीमान् मैं स्वर्ण मुद्रा को चुनूँगा," बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया।
अकबर बीरबल का उत्तर सुनकर हैरान थे।
सभी दरबारियों को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
काफी समय से वे बीरबल को
नीचा दिखाने की ताक में थे और बीरबल ने स्वयं उन्हें यह
सुअवसर प्रदान कर दिया था।
अकबर ने कहा, “बीरबल, मेरे सेवकों में से किसी ने यह बात कही होती तो मैं मान लेता पर मुझे तुमसे ऐसी आशा बिल्कुल नहीं थी ।
" बीरबल ने विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज, जिसके पास जो नहीं होता है वह उसी की इच्छा करता है।
आपके राज्य में मेरे साथ-साथ सभी के पास न्याय है।
हाँ, धन की कमी अवश्य है इसलिए मैंने स्वर्ण मुद्रा का चयन किया।"
अकबर ने बीरबल के उत्तर से प्रसन्न होकर उसे एक नहीं वरन् एक हज़ार स्वर्ण मुद्राओं को इनाम में दिया।