न यहाँ न वहाँ

एक बार एक दरबारी बीरबल की जगह लेना चाहता था।

बीरबल ने अपना पद त्याग दिया और वह दरबारी मंत्री बन गया।

एक दिन अकबर ने अपने नए मंत्री से कहा, “इन तीन सौ सिक्कों को इस प्रकार

खर्च करो कि सौ अशर्फ़ियाँ मुझे इसी जीवन में प्राप्त हो, दूसरी सौ अशर्फ़ियाँ दूसरे जीवन

में और अंतिम सौ अशर्फ़ियाँ न यहाँ न वहाँ मिले।”

जब उसे कुछ समझ नहीं आया,

तो उसने बीरबल से सहायता माँगी।

बीरबल ने कहा, “मुझे अशर्फ़ियाँ दो, मैं कुछ

सोचता हूँ।” अपने पुत्र का विवाह कर रहे व्यापारी को बीरबल ने सौ अशर्फ़ियाँ अकबर की ओर से उपहार में दे दीं।

व्यापारी ने अकबर के लिए ढ़ेर सारे उपहार भिजवाए।

अगली सौ अशर्फ़ियों से भोजन खरीदकर बीरबल ने गरीबों में बाँट दिया।

बचे हुई सौ अशर्फ़ियो से उसने एक संगीत समारोह का आयोजन किया।

अगले दिन बीरबल ने अकबर को दरबारी की ओर से बताया, " व्यापारी को दी गई अशर्फ़ी आपको इसी जीवन में वापस मिल गई।

गरीबों पर खर्च किए गए धन का लाभ आपको अगले जन्म में मिलेगा पर,

जो धन संगीत समारोह पर खर्च किया गया है वह आपको न तो यहाँ मिलेगा और न ही वहाँ ।