सम्राट् अकबर को शिकार का बेहद शौक था।
किन्तु उनके इस शौक के कारण जंगल तहस-नहस हो रहा था।
हालाँकि बीरबल इससे उत्पन्न होने वाले खतरे से अवगत था पर एक सेवक होने के कारण चुप ही रहता था।
वह सम्राट् को नाराज नहीं करना चाहता था।
शीघ्र ही सम्राट को उनकी गलती का अहसास कराने का अवसर मिल गया।
एक बार अकबर और बीरबल जंगल से होकर गुजर रहे थे।
तभी उन्होंने दो उल्लुओं की आवाज सुनी।
अकबर ने बीरबल से पूछा, “ये उल्लू एक-दूसरे से क्या कह रहे हैं, क्या तुम जानते हो?"
बीरबल ने कहा, “महाराज, ये उल्लू दहेज के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
दूल्हे के पक्ष का उल्लू पचास बंजर भूमि की माँग कर रहा है।
पर दुल्हन के पक्ष का उल्लू साठ बंजर भूमि देना चाह रहा है।"
“दूल्हे के पक्ष के
उल्लू की राय में जब पचास बंजर भूमि ही नहीं है तब दुल्हन के पक्ष वाले साठ बंजर भूमि कहाँ से देंगे।
दुल्हन के पक्ष ने आश्वस्त किया कि यदि राजा इसी प्रकार शिकार करता रहेगा तो शीघ्र ही भूमि उपलब्ध हो जाएगी।”
यह सुनकर अचानक अकबर को यह अहसास हो गया कि उनके शौक के कारण जंगल का नुकसान हो रहा था।
इसके पश्चात् उन्होंने शिकार छोड़ देने का निश्चय किया।