एक दिन शिकार करते समय अकबर की अँगुली कट गई।
बीरबल ने यह देखा तो कहा, “जो होता है अच्छा होता है।”
बीरबल की बात सुनकर अकबर नाराज हो उठा और उसे अपनी नज़रों से दूर कर राज्य से
निकाल दिया। जाते-जाते बीरबल ने कहा, "यह भी अच्छा ही हुआ।" कई दिनों बाद
अकबर पुनः शिकार करने गया।
जंगल में कबीलियों ने उसे पकड़ लिया। वे
अपने देवता को अकबर की बलि देने ले गए।
वह बुरी तरह डर गया।
कबीले वाले अकबर की बलि देने की तैयारी ही कर रहे थे कि उन्होंने उसकी कटी हुई अँगुली देखी।
उसने कहा, “ओह! हम इसकी बलि नहीं दे सकते।
देखो, इसकी अँगुली कटी हुई है।
दोषपूर्ण शरीर की बलि अपने भगवान को नहीं दी जा सकती है।"
उन लोगों ने यह कहकर अकबर को छोड़ दिया।
घर वापस आकर अकबर ने बीरबल को बुलाया और उसे सारा किस्सा विस्तारपूर्वक सुनाते हुए कहा, "तुम्हारा कथन सत्य हो गया।
पर तुम्हें राज्य से निकालने की मेरी आज्ञा तुम्हारे लिए अच्छी कैसे हुई?"
बीरबल ने कहा, "यदि आपने मुझे जाने के लिए नहीं कहा होता तो शायद मैं भी आपके साथ शिकार पर जाता ।
वहाँ आपकी जगह मुझे पकड़कर कबीले वाले मेरी बलि चढ़ा देते।
आपकी आज्ञा ने तो मेरी जान बचा दी।"