बीरबल के गुरु

एक दिन अकबर ने कहा, “बीरबल, मैं तुम्हारे गुरु से मिलना चाहता हूँ।”

बीरबल का कोई गुरु था ही नहीं पर वह बादशाह को यह बताना नहीं चाहता था।

उसने झूठ बोलते हुए कहा कि उसके गए हुए हैं।

फिर भी अकबर गुरु से मिलने पर जोर देते रहे।

बीरबल ने एक गरीब गड़रिए तीर्थाटन पर गुरु को अपना गुरु बनने का प्रशिक्षण दिया।

इस कार्य को करने के लिए बीरबल

ने उसे पचास स्वर्ण मुद्राएँ दीं।

गड़रिए ने अपना रूप बदलकर एक साधु

का रूप धर लिया। कई माह बाद बीरबल अकबर को अपने

कहा,

गुरु से मिलाने ले गया।

अकबर ने गुरु का अभिनन्दन कर 'आपका अभिनन्दन है गुरु जी, मैं आपसे कुछ बातें करना चाहता हूँ।”

गुरु मौन रहे। अकबर ने सोचा कि शायद उन्हें धन चाहिए... उन्होंने अशर्फ़ियों का कटोरा उनके सामने रखा।

फिर भी गुरु जी ने कुछ नहीं कहा।

रुष्ट होकर अकबर अपने महल लौट आए।

उन्होंने बीरबल को बुलाकर पूछा, "एक मूर्ख से मिलने पर हमें क्या करना चाहिए?"

छूटते ही बीरबल ने कहा, " शांत

रहें।" अकबर को एक झटका लगा।

उन्होंने सोचा... स्वर्ण मुद्राएँ देने के कारण अवश्य ही गुरु जी ने मुझे मूर्ख समझ लिया होगा इसीलिए वे शांत रहे।