एक दिन की बात है, अकबर का कमरा साफ़ करने के बाद
सेवक का मन अकबर के नरम बिस्तर पर लेटने का हुआ।
उसने एक झपकी लेने की सोची।
पर लेटते ही वह उठ बैठा, उसे भय था कि ऐसा करते हुए उसे कोई देख न ले।
किंतु एक सेवक ने उसे ऐसा करते देख लिया और अकबर को
शिकायत पहुँचा दी।
नाराज होकर अकबर ने आदेश दिया, “कल प्रातः सेवक को पच्चीस कोड़े लगाए जाएँ।”
यह सुनकर सेवक भागा हुआ बीरबल के पास गया और सहायता माँगी।
बीरबल ने कहा, “जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही करो। "
आधी रात को किसी की चीख-पुकार सुनकर महल में जाग हो गई।
लोगों ने अकबर के सेवक को चिल्लाते हुए सुना।
उसने अकबर को देखते ही कहा, “महाराज! आपकी सजा की तुलना में मेरी सजा तो कुछ भी नहीं है।
" आश्चर्यचकित अकबर ने पूछा, “कैसी सजा?"
सेवक ने बताया, “महाराज, मैंने स्वप्न में देखा कि यमदूत आपको कोड़े लगा रहा था।
जब मैंने कहा कि मेरे महाराज की जगह मुझे कोड़े लगा दो,
तब उसने कहा कि मैं तो कुछ पल के लिए ही महाराज के बिस्तर पर सोया था
पर राजा तो वर्षों से उस बिस्तर पर सो रहे हैं इसलिए उन्हें हज़ार कोड़े लगने चाहिए।"
अकबर शांत रहे और उन्होंने सेवक को दी हुई सजा वापस ले ली।