सूत कातने के लिए रुई अकबर बाहर से मँगवाते थे कई लोगों की आजीविका उससे चलती थी।
शुरू में तो सब अच्छा चला पर फिर रुई की चोर बाज़ारी होने लगी।
चोर बाज़ारी कौन कर रहा था, पता ही नहीं चल रहा था।
अकबर ने और अधिक रुई मँगवाई जिससे जुलाहों को नुकसान न हो और उनकी आजीविका चलती रहे।
पर कोई लाभ न हुआ। चोर बाज़ारी के कारण रुई का अभाव ही रहा।
क्रोधित होकर बादशाह ने रुई मँगवाना ही बंद कर दिया।
बेचारे जुलाहे परेशान हो गए। वे बीरबल के पास सहायता लेने गए।
बीरबल ने उन्हें आश्वासन देकर लौटा दिया। बीरबल ने अकबर से कहा, “महाराज! आप
रुई का आयात न रोकें। रुई के चोरों को मैं पकडूंगा।”
बीरबल को पता था कि बिचौलिया ही रुई को दबा कर अधिक दामों में बेचते हैं।
उसने रुई के आढ़तियों को बुलाकर कहा, “जितनी रुई मँगवाई गई वह कातने वालों तक नहीं पहुँची।
कुछ चोर रुई को अपनी पगड़ी में छिपा लेते हैं।
मैं जानता हूँ चोर यहीं हैं पगड़ी स्वयं ही मुझे चोर का पता बता देगी।"
दोषी आढ़तियों ने एक-दूसरे को देखा।
एक आदमी डर के मारे अपनी पगड़ी ठीक करने लगा कि कहीं पगड़ी पर रुई तो नहीं लगी है...
बीरबल की नज़रों ने तुरंत ताड़ लिया। बस फिर क्या था... चोर पकड़ा गया।
उसके गोदाम से रुई की गाठें बरामद की गईं।
रुई का काम फिर से प्रारम्भ हो गया और गरीबों को आजीविका मिलने लगी।