एक दिन जब बीरबल दरबार में पहुँचा तो वह हैरान रह गया।
चारों ओर दरबार में अफ़रा तफ़री मची हुई थी।
पता चला कि अकबर के पिता की दी हुई अँगूठी खो गई थी।
अकबर ने बीरबल से अँगूठी ढूँढ़ने का अनुरोध किया।
“अँगूठी यहीं पर है और वह एक दरबारी के पास है।”
दरबारियों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
वे आश्चर्यचकित थे कि बीरबल का इशारा किसकी ओर है।
तभी बीरबल ने कहा, “यह उस दरबारी के पास है जिसकी दाढ़ी में तिनका है।”
अचानक एक दरबारी ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा।
बीरबल ने उसे ऐसा करते देख लिया और कहा, “वह रहा चोर।
उसी के पास राजा की अँगूठी है । "
पहरेदारों ने तुरंत उस दरबारी को पकड़ लिया।
तलाशी लेने पर उन्हें
राजा की अँगूठी मिल गई।
दरबारी को कैद में डाल दिया गया।
अकबर बीरबल को धन्यवाद देकर पूछा कि उसे यह कैसे पता चला कि अँगूठी
किसी एक दरबारी के पास थी।
बीरबल ने उत्तर दिया, “दोषी व्यक्ति सदा भयभीत रहता है।
मैंने वह भय उसके चेहरे पर देख लिया था । "