सिक्कों का थैला

एक बार एक तेल बेचने वाले और कसाई के बीच झगड़ा हो गया।

उनका विवाद सुलझने का

नाम ही नहीं ले रहा था।

फलतः उन्होंने बीरबल से सहायता लेने का निश्चय

किया। कसाई ने कहा, “मैं अपनी दुकान में बैठा माँस बेच रहा था

तभी तेल विक्रेता ने मेरे पास आकर एक खाली पीपा माँगा।

जब मैं भीतर पीपा लाने गया तब उसने मेरी दुकान में आकर मेरे सिक्कों का थैला चुरा लिया।

फिर वह उस थैले को अपना बताने लगा।”

तेल विक्रेता ने याचना करते हुए कहा।

“नहीं, श्रीमान्! यह सच नहीं है।

यह थैला मेरा ही है। मैंने इसे कसाई से नहीं चुराया है।

मैं थैले में सिक्का डाल रहा था तब उसने यह देखा था।”

बीरबल ने दोनों की बात सुनी, किन्तु कौन सच कह रहा था?

इसका निर्णय न कर सका।

अंततः उसने अपने सेवकों से एक हौदा मँगवाया।

बीरबल ने उसे पानी से भरकर सिक्कों का थैला उसमें डाल दिया।

जब सिक्कों से तेल निकलकर पानी की सतह पर तैरने लगा तब बीरबल समझ गया कि यह थैला तेल विक्रेता का ही है।

झूठ बोलने के लिए कसाई को कठोर सजा दी गई।