चिराग तले अंधेरा

सुहानी सुबह थी।

अकबर और बीरबल छज्जे पर बैठे सूर्योदय देख रहे थे।

धीरे-धीरे आकाश से अंधकार समाप्त हो रहा था और सूर्य की किरणें बिखर रही थीं।

यमुना नदी के कज्जल जल पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं और जल सुनहरा दिखने लगा था।

वे दोनों ध्यानमग्न होकर इस मनोहर दृश्य का आनंद ले रहे थे तभी उन्हें महल के फाटक के बाहर कुछ शोर सुनाई दिया।

दोनों ने उस दिशा में देखा। कुछ चोर यात्रियों को लूट रहे थे।

अकबर ने तुरंत अपने पहरेदारों को चोर को पकड़ने के लिए भेजा किन्तु पहरेदारों के पहुँचने से पहले ही चोर वहाँ से भाग खड़े हुए।

अकबर आग बबूला हो उठा। बीरबल की ओर मुड़कर उसने कहा, “प्रशासन की लापरवाही से ही ऐसी घटना घटती है।

एक बादशाह के लिए क्या यह शर्म की बात नहीं

है कि उसकी नज़रों के सामने लोगों को लूटा जाए और वह कुछ न कर सके?"

बीरबल ने अकबर को शांत करते हुए कहा, "महाराज !

एक चिराग चारों ओर रोशनी बिखेरता है पर उसके नीचे अंधेरा ही रहता है।”

अकबर बीरबल के सूझपूर्ण उत्तर को सुनकर संतुष्ट हो गया।

उसने यात्रियों को हरजाना दिया।

हरजाना पाकर यात्री अपने रास्ते चले गए।