खोया हुआ माणिक

एक बार की बात है, तेकचंद ने अपने मित्र से हज़ारों रुपए धोखे से ले लिए।

तेकचंद के भाई मोहनलाल को इन सभी बातों की जानकारी थी।

तेकचंद भयभीत था कि कहीं उसकी कुटिल योजना के विषय में मोहनलाल अकबर को सूचित न कर दे।

यह विचार कर तेकचंद ने मोहनलाल पर हज़ारों रुपए की माणिक को चुराने का आरोप उस पर लगा दिया।

साथ ही उसने चार लोगों को मोहनलाल के विरुद्ध झूठी गवाही देने के लिए रिश्वत भी दी।

बीरबल को इस बात का पता चला।

उसने चारों गवाहों को बुलाया और उन सभी से अलग-अलग बात की।

बीरबल ने उनसे बस एक सवाल किया, “माणिक कितना बड़ा था?”

पहला गवाह एक मोची था। उसने कहा, “ माणिक मेरे हाथों जितना बड़ा था।”

दूसरे गवाह दर्जी ने कहा, “ओह! वह तो सूई के बराबर था।”

तीसरा गवाह एक नाई था। उसने कहा, “वह मेरे उस्तरे के बराबर था।”

चौथे गवाह बढ़ई ने कहा, “हूँऽऽऽ.......... वह तो हथौड़ी के बराबर था।”

बीरबल ने उनकी झूठी गवाही सुनकर सभी गवाहों को दो-दो कोड़े लगाने के लिए कहा।

कोड़े खाकर उन्होंने सच्चाई बताई कि उन्होंने अपने जीवन में माणिक देखा ही नहीं था।

तेकचंद ने उन्हें झूठ बोलने के लिए रिश्वत दी थी।

तेकचंद को उसकी करतूतों के लिए कड़ा दंड मिला।