वे क्या सोच रहे हैं?

एक बार अकबर ने घोषणा की, कि “जो भी व्यक्ति मेरे दरबारियों के मन में

चल रहे भावों को बता देगा उसे उपहार स्वरूप पाँच हज़ार स्वर्ण मुद्राएं दी जाएँगी।”

कई ज्योतिषियों, भविष्य वक्ताओं तथा साधारण लोगों

ने प्रयत्न किया पर दरबारी सदा यही कहते कि उनके मन में कुछ और ही भाव थे। एक

गरीब ब्राह्मण दिल्ली से अपना भाग्य आजमाने आया।

हार जाने पर वह बीरबल से मिलने गया।

उसने बीरबल को सारी बात बताई।

बीरबल ने उसकी बुद्धिमता को समझकर कहा, “कल फिर प्रयत्न करना और मैं जो कहूँ वही कहना।”

अगले दिन ब्राह्मण ने अकबर से एक ओर अवसर माँगा।

राजा ने उसे अवसर प्रदान कर दिया।

ब्राह्मण ने कहा, “मैं केवल एक दरबारी के

मन की बात ही नहीं वरन् आप सभी दरबारियों के मन में क्या चल रहा है वह बताऊँगा।

उन सभी की इच्छा है कि बादशाह दीर्घायु हों तथा उनके राज्य में समृद्धि तथा यश हो।"

ब्राह्मण की बात को कोई भी दरबारी काट न सका।

तब अकबर ने कहा, “अच्छा बताओ, मेरे मन में क्या है?”

“ आपकी इच्छा है कि आपके सभी पूर्वज स्वर्ग के उत्तराधिकारी हों। "

अकबर प्रभावित हो गया और उसने पाँच हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ ब्राह्मण को दे दीं।