एक दिन अकबर बीरबल के साथ शाही उद्यान में सैर कर रहे थे।
तभी उन दोनों ने पक्षियों को अपने घोंसलों में लौटते देखा।
अकबर ने कहा, “इन बेचारे पक्षियों को प्रतिदिन भोजन की खोज में दूर जाना पड़ता है।
मेरे पक्षी अपने सुनहरे पिंजरे में प्रसन्न हैं।
उन्हें अच्छा भोजन भी प्राप्त होता है।"
बीरबल ने कहा, “क्या मैं आपके तोते को अपने हाथ में ले सकता हूँ?"
अकबर सहमत हो गए।
बीरबल ने पिंजरा खोला और तोते को अपने हाथ में ले लिया।
तोते के नहीं उड़ने से वह आश्चर्यचकित था।
अकबर ने उसे उड़ाने की बहुत चेष्टा की पर तोता हाथ से नहीं उड़ा।
पक्षी के इस व्यवहार से अकबर परेशान हो उठा।
बीरबल ने तब कहा, "महाराज, पक्षियों का स्वभाव चारों ओर उड़ना है।
वे अपना भोजन स्वयं ढूँढते हैं।
उन्हें पिंजरे में रखकर आप उनके
उड़ने की क्षमता और स्वतंत्रता समाप्त कर रहे हैं।
अब तोते की आदत पिंजरे में बैठे रहने की हो गई है
और वह उड़ना ही भूल गया है।"
बीरबल की बातें सुनकर अकबर उदास हो गया।
शाही पशु चिकित्सक को बुलाकर अपने सभी पक्षियों का इलाज करवाया।
उनके स्वस्थ हो जाने पर अकबर ने बड़े ही प्रेमपूर्वक उन्हें अपने हाथों में लिया।
वे सभी उड़कर खुले आसमान में विचरने लगे।