छद्म वेष में बादशाह

अकबर अपने राज्य के गाँवों में अकसर रूप बदलकर घूमा करते थे।

बीरबल ने कई बार उन्हें सचेत करते हुए अपने साथ सैनिक ले जाने के लिए कहा था पर अकबर अपनी जिद से अकेले ही जाया करते थे।

एक बार इसी तरह एक साधारण ग्रामीण के रूप में अकबर घूम रहे थे।

तभी एक दाढ़ी वाले आदमी ने आकर उन्हें रोका और कहा, “तुम कौन हो?

हमारे गाँव में क्या कर रहे हो?"

अकबर ने उत्तर दिया,

'ओह! मैं एक बंजारा हूँ.. छोटे-मोटे काम करके पैसा कमाता हूँ। मुझे

जहाँ भी चाहूँ रहने का अधिकार है।"

उस व्यक्ति ने कहा, “अरे हाँ, तुम जहाँ चाहे रह सकते हो किन्तु तुम्हारे हाथ में यह राजा की अँगूठी कैसे और क्यों है?

क्या तुमने चुराई है?"

यह कहकर उस दाढ़ी वाले ने अकबर के हाथ से अँगूठी खींची और भाग खड़ा हुआ।

अगले दिन अकबर ने अपने दरबारियों को उस दाढ़ी वाले के विषय में बताकर सारा किस्सा सुनाया।

अँगूठी छीने जाने की बात भी बताई।

तभी बीरबल ने खड़े होकर कहा, “क्षमा करें महाराज !

मैं ही वह दाढ़ी वाला व्यक्ति था।

सिपाहियों के बिना अकेले जाने से आने वाली परेशानियों से मैं आपको अवगत करवाना चाहता था।"

उस दिन के बाद से अकबर ने बीरबल की सलाह माननी शुरू कर दी।