सच्चा मालिक कौन?

एक बार एक आदमी बहुत दूर से घोड़ा गाड़ी में यात्रा करता हुआ दिल्ली जा रहा था।

रास्ते में उसे एक लंगड़ा व्यक्ति मिला।

उस लंगड़े व्यक्ति ने दिल्ली साथ ले चलने का अनुरोध किया।

दोनों दिल्ली पहुँचे।

यात्री ने उतरने में लंगड़े की सहायता करनी चाही पर लंगड़ा चिल्लाया, “मुझे गाड़ी से उतारने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ?

मैंने तुम पर दया कर तुम्हें दिल्ली तक अपने साथ आने दिया।

अब तुम उतरो और जाओ।

” झगड़े को सुलझाने में असमर्थ दोनों बीरबल के पास गए।

बीरबल ने दोनों की बातें सुनीं।

फिर उनसे घोड़ा लेकर शाही अस्तबल में बाँध दिया और उन्हें अगले दिन बुलाया।

अगली सुबह बीरबल ने लंगड़े आदमी को अस्तबल जाकर अपना घोड़ा लाने के लिए कहा।

अस्तबल में ढेरों घोड़े थे। वह घोड़े को पहचान ही नहीं पाया।

अब उस यात्री की बारी आई।

उसने तुरंत अपने घोड़े को पहचान लिया।

घोड़े ने अपना चेहरा यात्री के कंधे से रगड़ा।

बीरबल समझ गया कि वही यात्री घोड़े का सच्चा मालिक है।

उसने लंगड़े व्यक्ति को झूठ बोलने के लिए सजा दी।

वस्तुतः वह यात्री सुदूर देश का राजा था।

उसने अकबर और बीरबल को उनके सही न्याय के लिए धन्यवाद दिया।