एक बार एक व्यक्ति दिल्ली आया।
वहाँ उसने एक सुंदर हंस देखा।
हंस उसे इतना भाया कि सौ स्वर्ण मुद्राओं में उसने उसे खरीद लिया।
किन्तु दो दिनों के बाद अचानक
हंस गायब हो गया था।
सेवकों को भी हंस की कोई जानकारी नहीं थी।
परेशान होकर वह व्यक्ति बादशाह अकबर और बीरबल से सहायता माँगने गया।
सारी बातें सुनकर बीरबल ने उस व्यक्ति के सेवकों को दरबार में बुलवाया।
सभी सेवकों का ध्यान से निरीक्षण करने के बाद कुछ देर तक विचार करता रहा।
फिर बीरबल ने कहा, “चोर इन सेवकों में ही है।
वह अत्यंत चतुर है।
उसने न केवल हंस को मारकर
खा लिया है वरन् उसके कुछ पंखों को अपनी पगड़ी में भी रख रखा है।"
ठीक उसी समय जिस सेवक ने हंस को खा लिया था उसने अपनी पगड़ी को छुआ।
उसे लगा कि संभवतः कुछ पंख पगड़ी में लगे हुए हों।
बीरबल ने यह देखकर उसे तुरंत पकड़ लिया।
अंततः उस सेवक ने स्वीकारा कि उसने हंस को खा लिया था।
साक्ष्य के रूप में उसने हंस के पंख भी दिखाए।
अकबर ने तुरंत उसे कारागार में डलवा दिया।