अकबर को कहानी सुनना बहुत पसंद था।
उन्होंने अपने दरबारियों को सोते समय कहानी सुनाने का कार्य सौंपा था।
पर प्रत्येक कहानी के अंत में अकबर पूछते, “फिर क्या हुआ?"
और फिर दूसरी कहानी सुनानी पड़ती थी।
परेशान होकर दरबारियों ने बीरबल से सहायता माँगी।
उस रात बीरबल ने अकबर को एक कहानी सुनाई और जब अकबर ने पूछा, “फिर क्या हुआ?"
उसने दूसरी कहानी शूरू कर दी।
“जंगल में एक शिकारी की कुटिया थी।
प्रतिदिन कुछ चिड़ियाँ झोंपड़ी में घुसकर कुछ अन्न चुरा ले जाती थी।
इसलिए शिकारी ने उन अनाज के दानों को एक बड़ी टोकरी में रखकर बंद कर दिया।
चिड़ियाँ दाने न ले सकीं, तो उन्होंने चूहे से सहायता माँगी।
चूहे ने टोकरी में एक छेद बना दिया। फिर पाँच सौ चिड़ियाँ
झोंपड़ी में एकत्रित हो गई। एक चिड़ियाँ अनाज का दाना लेकर उड़ गई।
फिर दूसरी चिड़ियाँ अनाज का एक दाना लेकर उड़ी।
फिर तीसरी... एकतालीसवीं चिड़ियाँ... इक्यानवीं चिड़ियाँ उड़ी..." “और कितनी चिड़ियाँ बीरबल?”
“चार सौ..." “कब उनका दाना ले जाना खत्म होगा?"
"जब आप फिर क्या हुआ पूछना बंद करेंगे।”
अकबर को अपनी भूल का एहसास हो गया।
उन्होंने तभी से सोते समय कहानी सुनना छोड़ दिया।