धूप और छाया

एक बार अकबर और बीरबल में किसी बात पर बहस छिड़ गई।

बीरबल आँधी की भाँति महल से बाहर निकला और फिर कभी नहीं आया।

कई दिनों बाद अकबर को यह एहसास हुआ कि बीरबल के बिना मामलों को वह नहीं सुलझा सकते हैं।

वह बीरबल को वापस बुलाना चाहते थे पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

अचानक अकबर को एक उपाय सूझा।

उन्होंने सभी गाँवों में संदेश भेजा, “जो भी धूप में बिना किसी छाता के छाया में चलेगा उसे हज़ार स्वर्ण अशर्फ़ियाँ उपहार में दी जाएँगी।”

कई दिनों के बाद एक गाँव वाला अकबर के दरबार में सिर पर चारपाई रखे हुए आया।

उसने कहा, “मैं गाँव से सिर पर चारपाई रखकर आ रहा हूँ।

मैं धूप में भी था और छाया भी साथ थी।"

उससे प्रभावित होकर अकबर ने उसे पुरस्कृत किया और फिर उससे पूछा, “तुम्हें यह विचार कहाँ से आया?"

मेरे साथ रहने वाले व्यक्ति ने मुझे यह उपाय बताया है।"

अकबर समझ गए कि वह व्यक्ति बीरबल के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता।

वह स्वयं उस गाँव में गए और बीरबल को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए।