एक बार बीरबल के दरबार में पहुँचते ही अकबर ने कहा, “बीरबल मैं तुमसे नाराज हूँ।
तुम सबके प्रति न्याय करते हो फिर भी मोहनलाल (पास बैठे व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए) से उधार ली हुई दस हज़ार स्वर्ण अशर्फ़ियाँ तुमने नहीं लौटाईं
" बीरबल ने उत्तर दिया, “मैंने उनसे कोई पैसा उधार नहीं लिया।
" मोहनलाल ने कहा, "महाराज, बीरबल ने छह माह पहले मुझसे उधार लिया था।
जब मैंने पैसे वापस माँगे, तो उन्होंने देने से मना कर दिया।
छह दरबारियों के सामने उधार के दस्तावेज़ भी फाड़ डाले।
" गवाहों को सुनने के बाद बीरबल ने कहा, “ छह दरबारियों की नज़रों के सामने क्या मैं
मूर्ख हूँ, जो दस्तावेज़ फाड़ दूँ?" अकबर समझ गए कि बीरबल
निर्दोष है।
उन्होंने मोहनलाल से सच्ची बात बताने को कहा।
मोहनलाल ने कहा, “क्षमा करें महाराज, बीरबल के विरुद्ध झूठी शिकायत करने के लिए छह दरबारियों ने मुझे धन देने का प्रलोभन दिया था।
" अकबर ने मोहनलाल को चेतावनी देकर छोड़ दिया पर
उन छह दरबारियों को कैद में डलवा दिया तथा नुकसान की भरपाई के रूप में दो हज़ार अशर्फ़ियाँ बीरबल को देने के लिए कहा।
बीरबल ने कहा, “सत्य की सदा जीत होती है।”