नहीं का दिन

सुलतान खान नामक दरबारी बीरबल से बहुत ईर्ष्या करता था।

एक दिन बीरबल को दरबार में आने में थोड़ी देर हुई तो उसने कहा, “इन दिनों प्रशासनिक कार्यों के प्रति बीरबल अत्यंत लापरवाह हो गया है।

" अकबर समझ गए कि सुलतान खान उन्हें बीरबल के विरुद्ध भड़का रहा है, अत: उन्होंने कहा,

“मैं कैसे उसे सजा दूँ ?"

सुलतान खान ने कहा, “बीरबल जो भी कहे

उसका उत्तर नहीं में दीजिए।

" बीरबल ने दरबार में पहुँचते ही कहा,

'महाराज ! मेरी पत्नी अस्वस्थ थी, इसलिए मुझे वैद्य को बुलाने

जाना पड़ा।” “नहीं, मुझे तुम पर विश्वास नहीं है।" "यह सच है।

देर से आने के लिए मुझे क्षमा कर दें। " "नहीं, मैं तुम्हें क्षमा नहीं करूँगा।"

बीरबल ने सोचा, हूँऽऽ... लगता है आज नहीं का दिन है।

जब बीरबल ने सुलतान खान को मुस्कराते देखा तब उसे सारी बातें समझ में आ गईं।

बीरबल ने कहा, “क्या मैं घर जा सकता हूँ?” "नहीं, तुम नहीं जा सकते हो।"

" 'क्या आप सुलतान खान को मेरी जगह पर मंत्री पद देंगे?"

अकबर ने कहा, "नहीं, मैं नहीं दूँगा।"

इसी बीच अकबर समझ गए कि किस प्रकार बीरबल ने सुलतान को मात दे दी थी।

सुलतान का 'नहीं का दिन' उसी के लिए बुरा रहा।