न्याय का घंटा

अकबर ने शहर के बीचोंबीच एक ऊँची मीनार (बुर्ज़) बनवाई।

उस मीनार में लोहे का एक घंटा लटकाया गया।

न्याय चाहने वाले को घंटा बजाना होता था जिसे सुनकर अकबर दरबार में आकर मामला सुलझाते थे तथा न्याय करते थे।

एक दिन घंटा बजा।

अकबर ने अपने पहरेदारों को भेजकर न्याय चाहने वाले को बुलवाया।

पहरेदार एक बैल को अपने साथ लेकर आए।

बीरबल ने बैल को देखकर कहा, "लगता है इसका मालिक इसके बुढ़ापे के कारण इसे छोड़कर भाग गया है।”

मलिक को दरबार में बुलवाया गया।

अकबर ने उससे बैल के विषय में पूछा

। उसने कहा, “यह बैल अब खेत नहीं जोत सकता

है... मैं इसे क्यों रखूँ?"

बीरबल ने नाराज होकर कहा, “यदि तुम्हारे रिश्तेदार वृद्ध हो जाएँगे तो क्या तुम उन्हें छोड़ दोगे?”

“ऐसा मैं क्यों करूँगा?"

“फिर तुमने इस पशु को क्यों छोड़ा, जिसने पूरी निष्ठा से इतने वर्षों तक तुम्हारी सेवा की है?"

"बैल को न्याय चाहिए।

इसलिए इसके मालिक को सौ अशर्फ़ियाँ दण्ड स्वरूप देनी होंगी

जिससे इस वृद्ध बैल की देखभाल सरकार कर सकें" अकबर ने घोषणा की।

कहा,