सहायता का मूल्य

बीरबल दरबार में ही था तभी दो व्यक्ति उससे सहायता माँगने आए।

पहले व्यक्ति ने “मैं अपने सिर पर बोझ लेकर जा रहा था।

थककर आराम करने बैठ गया।

थोड़ी देर बाद जब उठकर चलना चाहा, तो वह भारी बोझ मुझसे उठ न सका।

तब मैंने इन महानुभाव से सहायता माँगी।

इन्होंने कहा, “मुझे बदले में क्या मिलेगा?"

मैंने कहा मैं एक गरीब व्यक्ति हूँ और कुछ नहीं दे सकता।

हालाँकि इन्होंने मेरी सहायता की और बदले में कुछ माँगा।

मैंने इन्हें फिर याद कराया कि मैं कुछ नहीं दे सकता।”

दूसरे व्यक्ति ने कहा, “तो क्या इसे मुझे 'कुछ भी' नहीं देना चाहिए? "

बीरबल समझ गया कि वह व्यक्ति धूर्त था।

इसलिए उसने कहा, "वह आदमी गरीब है और कुछ भी नहीं दे सकता।

पर मैं तुम्हें कुछ दूँगा।"

बीरबल ने अपनी कुर्सी से उठकर कुशन (कुर्सी का गद्दा) उठा लिया।

फिर उसने उस व्यक्ति से पूछा, “तुम्हें वहाँ क्या दिख रहा है?”

“कुछ नहीं," उस व्यक्ति ने कहा।

“तब ‘कुछ नहीं' ले लो और अपने रास्ते जाओ।"

वह व्यक्ति निरुत्तर होकर बेशर्मों की तरह चला गया।