एक बार शमशेर नामक एक फ़ारसी व्यापारी अकबर से मिला और बोला,
“लगभग पाँच सौ डेरिक का सामान बेचने के लिए मैं भारत आ रहा था।
रास्ते में मेरी मुलाकात दिलावर से हुई, जो भारत ही आ
रहा था। उसने अपने खच्चरों पर मेरे सामान को लाद लिया पर जब हम
लोग आगरा पहुँचे उसने मेरे सामान को लौटाने से मना कर दिया।
उसने कहा कि ये सामान उसका हैं।
महाराज, कृपया मेरी सहायता करें।”
अकबर ने बीरबल से इस मामले को सुलझाने के लिए कहा। बीरबल ने दिलावर पर नज़र रखी कि उसने फ़ारसी सामान का क्या किया?
शीघ्र ही उसने दोषी को पहचान लिया।
दरबार में वापस आकर उसने आँखों देखा हाल कह सुनाया।
“दिलावर ने एक हजार डैरिक में फ़ारसी सामान को बेचने की चेष्ठा की।
जब उसे उतने पैसे नहीं मिले तो उसने उन्हें तीन सौ डेरिक में बेच दिया।
यदि वे सामान उसका होता तो उसे उनका मूल्य पांच सौ डैरिक है यह पता होता।
वह उन्हें भला कम में क्यों बेचता?
महाराज! दिलावर ने शमशेर सिंह का सामान चुराया है।
" अकबर बीरबल का तात्पर्य समझ गया।
दिलावर को कैद में डलवा दिया और शमशेर के नुकसान की भरपाई कर दी।