अंधा संन्यासी

एक बार एक छोटी लड़की अकबर से मिली और बोली,

“कुछ दिनों पूर्व मेरे घर में डकैती हुई थी।

मेरे माता-पिता सो रहे थे पर आवाज़ सुनकर मैं जाग गई थी।

मैंने चोर को दरवाज़े से भागते देखा।

कल ही मैंने उसे एक अंधे संन्यासी के रूप में जंगल में रहते हुए देखा।

महाराज! कृपया मेरी सहायता करें।"

अकबर ने पहरेदारों को भेजकर उस संन्यासी को दरबार में बुलवाया।

पहरेदारों को वह संन्यासी एक वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न बैठा मिला।

उस सन्यासी के दरबार में आते ही छोटी लड़की ने रोना शुरू कर दिया, “चोर-चोर!”

अकबर ने उससे पूछा, “हाल ही में तुमने किसी घर में चोरी की?”

“हुजूर मैं अंधा हूँ। मैं किसी के घर में कैसे चोरी कर

सकता हूँ?” तभी बीरबल ने अकबर के कान में कुछ कहा और फिर तलवार उठाकर संन्यासी को मारने की चेष्टा की।

पलक झपकते ही संन्यासी उछला और बीरबल को किनारे ढकेल दिया।

बीरबल ने कहा, “यह संन्यासी अंधा नहीं है।

" चोर ने लड़की के घर में चोरी करना स्वीकार कर लिया।

क्रुद्ध अकबर ने उसे कैद में डलवा दिया।