गर्मी का दिन था।
अकबर बगीचे में बैठे थे तभी एक तीर उनकी बगल से निकलकर एक पेड़ में जाकर फँस गया।
पहरेदार तीर चलाने वाले को पकड़कर अकबर के पास ले गए।
वह एक युवक था।
अकबर को क्रोध में देखकर भयभीत हो उठा।
याचना भरे स्वर में उस युवक ने कहा, “महाराज! मैं आपको नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता था
, मैं तो आम पर निशाना साध रहा था।
" अकबर ने युवक की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बोला,
“इसने जैसे मुझे दुःख पहुँचाने की चेष्टा की है उसी तरह इसे भी सज़ा दो।
पहरेदारों ने युवक को आम के पेड़ से बाँध दिया और वे उस पर तीर चलाना ही चाहते थे।
तभी बीरबल दौड़ता हुआ पहरेदारों के पास पहुँचा और बोला, “
जिस प्रकार युवक ने महाराज को क्षति पहुँचाने की चेष्टा की थी ठीक उसी प्रकार तुम्हें भी युवक को
सज़ा देनी चाहिए।
तुम्हें आम पर निशाना लगाना चाहिए और तीर युवक को छूकर लगना चाहिए।”
अकबर को एहसास हो गया कि युवक के अनजाने में हुई गलती के लिए सज़ा देना सही नहीं था।
उस युवक को जाने दिया गया।
युवक ने बीरबल का आभार प्रकट किया और अपने रास्ते चला गया।