अब्दुल नामक एक मोची था।
प्रत्येक दोपहरी एक पेड़ के नीचे बैठकर वह भोजन करता था।
थोड़ी ही दूर पर एक मिठाई की दुकान थी।
मिठाई की खुशबू हवा
में होती थी जिससे अब्दुल को भोजन स्वादिष्ट लगा करता था।
मिठाई की दुकान का मालिक मुश्ताक अली नामक एक कंजूस था।
एक दिन मुश्ताक ने अब्दुल से कहा, "जिस स्वादिष्ट खुशबू का तुम मजा ले रहे हो उसके लिए तुम्हें मुझे कीमत देनी होगी।”
बेचारे गरीब अब्दुल के पास पैसे थे ही नहीं।
मुश्ताक उसे अकबर के पास ले गया।
पूरी बात सुनने के बाद अकबर असमंजस में थे।
उन्होंने बीरबल से सहायता माँगी।
बीरबल ने कहा, “मेरी समझ से मुश्ताक को उसका पैसा मिलना चाहिए।"
बीरबल ने एक अशर्फ़ी अपनी जेब से निकालकर मुश्ताक को दे दी।
फिर कहा, “मुश्ताक, इस अशर्फ़ी को सूँघकर मुझे वापस दे दो।”
“क्या...?” मुश्ताक बड़बड़ाया ।
"तुम इस सिक्के की खुशबू का मज़ा ले सकते हो पर इसे नहीं ले सकते।”
मुश्ताक ने अपनी गलती समझकर अब्दुल से क्षमा माँगी।
इधर बीरबल से अशर्फ़ी पाकर खुशी-खुशी अब्दुल अपने घर लौट आया।