सामान्य लोगों के वेष में अकबर और बीरबल बाज़ार में घूम रहे थे।
तभी उन्होंने देखा कि कुछ यात्री नुक्कड़ नाटक की तैयारी कर रहे हैं।
शीघ्र ही ढोलक की थाप के साथ नाटक के शुरू होने की
घोषणा हुई। कुछ लोगों ने लोकगीत गाया।
तभी एक कलाकार वहाँ आया, उसके
पीछे एक बैल भी आया। कलाकार के इशारों पर बैल ने कई कलाकारी
दिखाई और संगीत की धुन पर नाचकर भी दिखाया।
लोग वाह-वाह कर उठे।
बीरबल को लगा कि यह बैल नहीं था, बल्कि बैल के रूप में दो व्यक्ति थे।
उन दोनों के तारतम्य, समन्वय और क्रियाकलाप के उत्तम प्रदर्शन पर बीरबल आश्चर्यचकित था।
नाटक समाप्त होने पर बीरबल ने एक पत्थर उठाकर बैल को मारा।
बैल ने दर्द से अपना पैर ऐंठा ।
अकबर ने पूछा, "बीरबल, तुमने ऐसा क्यों किया?"
बीरबल ने कहा, “महाराज! मैं स्वाँग भरे बैल रूपी कलाकार की उत्तमता देखना चाहता था।
मेरे पत्थर फेंकने पर बैल रूपी कलाकार ने दर्द में सच्चे पशु (बैल) की तरह व्यवहार किया था।
अकबर ने बीरबल के अवलोकन की तारीफ़ की और नाट्य मंडली को उनके उत्तम प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत भी किया।