एक बार एक वृद्धा बीरबल के पास आई और बोली,
“ श्रीमान्, मेरे पुत्र ने अकबर के लिए कई लड़ाईयाँ लड़ी हैं, किन्तु हाल ही में वह बीमार होकर मर गया।
अब मुझे सहायता चाहिए।” “चिंता मत क
रें, बादशाह अकबर आपकी सहायता करेंगे।
जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही आप करें।” अगली
सुबह वह वृद्धा दरबार में आई।
एक जंग लगा हुआ पुराना तलवार उठाकर उसने कहा, “महाराज! यह तलवार मेरे पुत्र की है जिसने आपके लिए कई लड़ाईयाँ लड़ी थीं।
कृपया, इसे आप अपने पास रखें।
" अकबर ने कहा, “मैं इसका क्या करूँगा?”
उन्होंने अपने पहरेदार को वृद्धा को पाँच स्वर्ण मुद्राएँ देने के लिए कहा।
तभी बीरबल ने उठकर कहा, "मुझे तलवार दिखाओ तो।"
तलवार का निरीक्षण कर बीरबल ने कहा, "मुझे लगा कि शाही स्पर्श होते ही यह तलवार सोने की हो जाएगी।
पर मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आखिर क्यों आपके दयालु हाथों का जादू इस पर नहीं चला है।"
अकबर बीरबल का तात्पर्य समझ गया।
उसने पहरेदार से कहा, “इस वृद्धा को इस तलवार के वजन के बराबर सिक्के दिए जाएँ।"
वृद्धा अकबर और बीरबल को धन्यवाद देकर चली गई।