एक दिन बीरबल दरबार में देर से आया। उसने कहा,
क्षमा करें महाराज! मेरे पुत्र का
खिलौना टूट गया था।
जब तक मैंने उसे बना नहीं दिया उसने मुझे आने नहीं दिया।"
अकबर ने कहा, “क्यों बीरबल, एक बच्चे को संभालने में तुम्हें इतनी कठिनाई हुई?
“महाराज ! एक जिद्दी बच्चे को संभालना आसान नहीं हैं।”
“कल दरबार में अपने बच्चे को लेकर आना।
मैं तुम्हें बताऊँगा की जिद के कैसे पार पाया जाता है", अकबर ने कहा।
अगले दिन बीरबल दरबार में अपने चार वर्ष के पुत्र के साथ आया।
अकबर ने बच्चे को अपनी गोद में बिठाकर पूछा कि क्या उसे कुछ खाने के लिए चाहिए।
बच्चे ने कहा, “मुझे गन्ना चाहिए।"
गन्ना छीलकर, काटकर एक तश्तरी में लाया गया।
बच्चा उसे देखते ही चिल्लाया, “मुझे साबुत गन्ना चाहिए।"
अकबर ने कहा, “ठीक है, हम तुम्हारे लिए दूसरा मँगवाते हैं।"
"नहीं... ॐ ॐ ॐ ऽऽ... मुझे दूसरा नहीं चाहिए।
यही चाहिए।
इसके टुकड़ों को जोड़ दो।
" अकबर ने बच्चे को बहलाते हुए समझाया, "किन्तु यह संभव नहीं है,
" पर बच्चा और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
अकबर ने बीरबल से कहा, "बीरबल, तुम सही थे।
जिद्दी बच्चे को संभालना बच्चों का खेल नहीं है। "