बीरबल और पंडित

एक बार एक पंडित अकबर के दरबार में आया और बोला,

,,

'महाराज ! मैं बहुत ज्ञानी हूँ।

अपने ज्ञान की बदौलत कई लोगों को हरा चुका हूँ।

आपके दरबार में क्या कोई ज्ञानी है, जो मुझे हराने की चुनौती दे सके?"

अचानक बीरबल ने खड़े होकर कहा, चुनौती स्वीकार करता हूँ।

किसी पुस्तक पर मैं तुमसे शास्त्रार्थ करूँगा।

ठहरो, मैं पुस्तक लाता हूँ।

" बीरबल एक पुस्तक लेकर वापस लौटा और बोला, “यह है महान पुस्तक, “थिलाकाष्ट महिष बंधनं"।

पंडित ने इस पुस्तक के विषय में कभी सुना ही नहीं था।

उसने कहा, “मुझे शास्त्रार्थ के लिए कल सुबह तक का समय दीजिए।

” उस रात पंडित आगरा छोड़कर ही भाग खड़ा हुआ।

दरबार में अगले दिन जब वह नहीं आया तब अकबर ने पूछा,

“बीरबल, मुझे वह पुस्तक दिखाओ।"

बीरबल ने कहा, “महाराज! ऐसी कोई पुस्तक ही नहीं है।

उस में थिला (तिल) और काष्ठा (गोबर) थे, जिन्हें भैंस (महिष) के चमड़ें की रस्सी बनाकर बाँधा गया था।

इसलिए 'थिलाकाष्ठ महिष बंधनं' मैंने कहा।

मैं पंडित को उसके घमंड के लिए पाठ पढ़ाना चाहता था।

" अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी की भरपूर प्रशंसा की।