एक बार किसी प्रशासनिक मामले में अकबर और बीरबल में बहस छिड़ गई।
अकबर ने नाराज़ होकर बीरबल की सलाह मानने से इंकार कर दिया।
उन्होंने बीरबल से कहा, “मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखना
चाहता।” उस शाम घर पहुँचने पर बीरबल ने अपनी पुत्री को मिट्टी के
पात्र से खेलते देखा।
अचानक उसे एक युक्ति सूझी।
अगले दिन बीरबल अपनी पुत्री से वह मिट्टी का बर्तन लेकर दरबार में गया।
दरबार में प्रवेश करते ही अकबर ने देखा कि बीरबल की कुर्सी पर कोई और सिर पर मिट्टी का पात्र रखकर बैठा है।
अकबर ने ज़ोरदार आवाज़ में पूछा, “कौन हो तुम?
बीरबल की जगह पर क्यों बैठे हो?"
“महाराज! मैं हूँ बीरबल।"
सिर से पात्र हटाए बिना ही बीरबल ने कहा, “आपने कहा था कि मैं आपको अपना चेहरा न दिखाऊँ,
इसलिए इस मिट्टी के पात्र से मैंने अपना चेहरा ढक रखा है।
मैं आपकी आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता।"
अकबर ठहाका मारकर हँस पड़े और बोले, “बीरबल अपना पात्र हटाकर तुरंत अपने काम पर लग जाओ।"