एक खुशनुमा दिन, बीरबल अपने मित्रों के साथ समुद्र के किनारे गया।
चारपाई पर लेटे हुए वे सभी शीतल मंद पवन का आनंद ले रहे थे।
अचानक से बीरबल ने अपने मित्र को मुस्कराते हुए देखकर पूछा, “यह क्या है?
मित्र, तुम मुस्करा क्यों रहें हो?"
मित्र ने उत्तर दिया, “ ओह! मैं उस दिन के विषय में सोच रहा हूँ।
जब मैं प्रसन्न होऊँगा।”
जिज्ञासापूर्वक बीरबल ने पूछा, “वह दिन कब आएगा?”
मित्र ने कहा, “ओह! मैं उस दिन वास्तव में प्रसन्न होऊँगा जब समुद्र किनारे मेरा बड़ा घर होगा, एक बड़ी
आरामदेह घोड़ा गाड़ी होगी, कोसागार में ढेर सारे पैसे होंगे,
एक खूबसूरत पत्नी होगी, चार पुत्र और एक पुत्री होगी, जो पढ़कर खूब कमाएँगे..."
“रुको, रुको... तब तुम क्या करोगे?” बीरबल ने अपना सिर खुजलाते हुए पूछा।
मित्र ने कहा, “तब मैं चारपाई पर लेटकर आराम करूँगा, समुद्री हवा का मज़ा लेते-लेते चेहरे पर धूप सेकूँगा।"
यह सुनते ही बीरबल ने हंसना शुरू कर दिया, "मित्र, क्या तुम अभी वही नहीं कर रहे हो?"