बंदर एक मेरूदण्डी और सामाजिक जानवर है। ये बहुत चालाक होते हैं और आसानी से पेड़ों के माध्यम से चलने और छलांग लगाने के लिए जाने जाते हैं। इसके हाथ की हथेली एवं पैर के तलुए छोड़कर सम्पूर्ण शरीर घने रोमों से ढकी है। कर्ण पल्लव, स्तनग्रन्थी उपस्थित होते हैं। बंदर का अगला भाग पूँछ के रूप में विकसित होता है। हाथ, पैर की अँगुलियाँ लम्बी नितम्ब पर मांसलगदी है। बंदर कुछ हद तक चिंपैंजी, वनमानुष और गोरिल्ला जैसे दिखते हैं।
बच्चों को बहुत ज्यादा पसन्द होते है बंदर को देखना उसके बारे में सुनना और उनसे जुड़ी कहानियाँ को पढ़ना। यहाँ बंदर से जुडी कहानियाँ का एक संग्रह है जो बच्चों को काफी पसन्द आयेगी।
टुकी बहुत ही प्यारी बची है और वो हमेशा खेलती रहती है। वैसे तो टुकी का वास्तविक नाम जया है लेकिन जब वो बहुत छोटी थी तो वो पूरा दिन टुक-टुक देखती रहती थी इसलिए उसकी बुआ उसे प्यार से टुकी बुलाने लगी। उसका घर में कभी मन नहीं लगता है वो कभी दरबाजे पर तो कभी छत पर तो कभी खिड़की के पास खेलती रहती है।
थोड़ी शैतान थोड़ी मासूम है टुकी लेकिन सबका मन बहलाती है ये टुकी ।
बोली बहुत प्यारी है इसकी। गाना भी बहुत मीठा गाती है और टीवी में देख के नाच भी कर लेती है ये टुकी।
एक बार टुकी अपने मामा के घर गयी अपने मम्मी और पापा के साथ। वहाँ उनके बहुत मामा जी थे जिनकें साथ वो खूब घूमती थी और मस्ती करती थी। नाना और नानी के साथ भी वो खेलती थी उनसे कहानियाँ सुनती थी।
एक दिन की बात है वो अपने एक छोटे मामा जी के साथ छत पे घूम रही थी की तभी वहाँ से कुछ आवाज उसे सुनाई दिया। वो बहुत डर गयी और अपने मामा के गोदी में चिपक गयी। टुकी को देख के मामा हँसने लगे और उन्होंने कहाँ की टुकी ये कोई डराबना आवाज नहीं है ये तो मासूम बंदर की आवाज है जो तुमसे मिलने आया है।
टुकी देखि तब सामने तो एक लम्बी-लम्बी पूछ वाला बंदर था जो उसके तरफ देख रहा था। फिर वो खुश हो गयी और मामा से पूछी की ये कौन है तो उनके मामा बोले की जैसे मैं तुम्हारी मामा हूँ वैसे ये भी तुम्हारे मामा है।
तुम इसके साथ खेल सकती हो ये तुम्हें नाच दिखायेगा। फिर टुकी खूब हँसने लगी और बन्दर मामा मेरे बन्दर मामा करके बन्दर के साथ खेलने लगी।
उस दिन के बाद जब भी कही टुकी बन्दर देखती थी तो उसे बन्दर मामा कहके पुकारती है ।
मिष्टी, बहुत ही प्यारी एक बच्ची है जो अभी बहुत छोटी है ।
वो अपने खिलौना से कम खेलती है और घर के समान से ज्यादा खेलती है।
जब भी उसके सामने कोई कुछ खाने बैठता है तो वो सामने से थाली पकड़ के अपनी और खींचती है ।
उनकी मम्मी, दादी और दादा ये सब देख के बहुत हँसा करते है । आस-पास के कुछ बच्चे जो उनसे थोड़े बड़े है हमेशा उनके पास खेलने आते है और उनको गोदी में लेके घूमती है ।
मिष्ठी अभी चलना नहीं जानती है लेकिन वो उछल कूद के यहॉँ से वहाँ चली जाती है। उनकी मम्मी उसे प्यार से मिष्ठू बुलाती है।
मिष्ठी के घर के बगल में बहुत सारे बंदर आया करते है और कभी-कभी वो दादा जी के साथ बंदर को दूर से देख के खेला करती है।
एक दिन की बात है मिष्ठी के घर में एक पूजा हुआ जिसमें बहुत सारे मिठाई भी आया था।
सभी मिठाईयों में मिष्ठी को लडू का थाली बहुत प्यारा लगा।
वो फुदक-फुदक के वहाँ तक पहुँच गयी और थाली में से एक लडू उठा ली और उसे खाने लगी की तभी वह एक छोटा सा बंदर आया और मिष्ठी के पास बैठ गया और उसके हाथ से लडू छीन ने लगा।
मिष्ठी जोर-जोर से रोने लगी, इतने में घर के सभी लोग निकल के आये।
मिष्ठी और बंदर को एक साथ देख के घबड़ा गए।
मिष्ठी कस के लडू पकड़ी थी और बंदर लपक रहा था।
फिर जैसे ही दादा जी डंडा निकाले की बंदर लडू के थाली में से एक लडू लेके भाग गया और ऊपर छत पे जाके मिष्ठी को दिखा-दिखा के खाने लगा।
बंदर को ऐसे मुँह बना के खाते देख मिष्ठी खिलखिलाने लगी।
घर में सब हँसे और फिर मिष्ठी की मम्मी उसे गोद में उठा के बहुत सारा प्यार करने लगी।
एक व्यापारी ने एक मंदिर बनवाना शुरू किया और मजदूरों को काम पर लगा दिया।
बंदर की जिज्ञासा और कील आगे पढ़े