नैतिक कहानी (Moral Story) ऐसी कहानियां होती है, जिनमें नैतिकता के साथ-साथ उनके पीछे संदेश हमेशा शक्तिशाली होते हैं। एक नैतिक कहानी आपको यह सिखाता है कि आपको एक बेहतर इंसान कैसे बनना है। नैतिक कहानी आपके नैतिक चरित्र को मजबूत बनाती है। यहां 100 सीख देने वाली कहानियों (Moral Story) का संग्रह है। इसे एक बार जरूर पढ़े।
100 नैतिक कहानियाँ का संग्रह
गौतम बुद्ध से राजकुमार श्रोण ने दीक्षा ली थी। एक दिन बुद्ध अन्य शिष्यों ने बुद्ध को बताया कि श्रोण तप की उच्चतम सीमा तक पहुंच गया है, वह ज्यादातर तप में लगा रहता है।
आगे पढ़े यहाँएक राजा कुशल प्रशासक था। प्रजा के सुख-दुःख के लिए वह प्रायः साधारण वेशभूषा में उनके बीच घुमा करता था।
आगे पढ़े यहाँएक फकीर जो एक वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहा था, रोज एक लकड़हारे को लकड़ी काटते ले जाते देखता था।
आगे पढ़े यहाँएक आदमी को काम के सिलसिले में अपने गाँव से शहर जाना था। चूँकि वह बेरोजगार था और गाँव में उसे कोई काम उपलब्ध नहीं था, इसलिए उसने शहर जाकर काम ढूंढने का निश्चय किया।
आगे पढ़े यहाँसेठ धनीराम हमेशा पैसे कमाने में लगे रहते और परिवार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते। उनकी पत्नी अपनी हवेली के सामने रहने वाले मजदूर मोहन के परिवार की ख़ुशी देखकर उन्हें उलाहना देती - तुम हमेशा काम में लगे रहते हो
आगे पढ़े यहाँजीवन एक लम्बी दौड़ की तरह है, जिसमें सबको एक सामान समय मिलता है। जगद्गुरु शंकराचार्य ज्ञान की जटिल व सूक्ष्म बातों को जितनी सरलता से समझाते थे,
आगे पढ़े यहाँकिसी देश के रक्षामंत्री अपनी सेना के एक हवाई जहाज में निरीक्षण हेतु गए। यह हवाई जहाज अपने सैनिक को लेकर युद्धस्थल की ओर जाने की तैयारी में था।
आगे पढ़े यहाँप्राचीन समय की बात है मगध के नगरसेठ थे अंगपाल। वे जितने मृदु स्वभाव के थे, उनकी पत्नी उतनी ही कटु प्रकृतिवाली थी।
आगे पढ़े यहाँसत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है बल्कि यह सभी व्यक्तियों का खजाना है । खाली गमला लाने वाला बना विजेता।
आगे पढ़े यहाँस्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रवचनों में अमीरचंद नामक व्यक्ति भजन गता था। उसका गला अत्यंत सुरीला था।
आगे पढ़े यहाँसंत रविकुमार त्याग और वैराग्य का जीवन व्यतीत करते थे। वह निरंतर ईश्वर का स्मरण करते और संतो के साथ आध्यात्मिक चर्चाओं में लीं रहते थे।
आगे पढ़े यहाँअपने कर्म से दिया मानवता की सेवा का सन्देश महिला संत आंडाल पूजा में लीन थीं।तभी पास के गाँव के लोग आए और सहायता का आग्रह करने लगे।
आगे पढ़े यहाँजिज्ञासु ने समझे पूर्णता के मायने एक बार कबीरदास जी के पास एक जिज्ञासु आया और पूछने लगा महात्मन! मुझे गृहस्थ बनना चाहिए अथवा सन्यासी ?
आगे पढ़े यहाँकथा सिद्धार्थ के जीवन के उस दौर की है, जब वे बुद्धत्व को प्राप्त नहीं हुए थे और निरंजना नदी के तटीय वनों में वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे।
आगे पढ़े यहाँकबीर अपने स्टिक दोहों और पैनी साखियों के कारण धीरे-धीरे सिद्धपुरुष के रूप में ख्याति पाने लगे थे। वे जुलाहे का काम करते थे।
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